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My Journey

My Journey

The Journey of my life

  
This is the journey of my life so far, how I over came all my struggles, uncertainties,overcomings sufferings and about my triumphs. My Journey in life has been hard full of experiences. I have learned a lot of lessons over the years. I will start off with where I am from and end with my greatest achievements. I am from Jalandhar, a town in Punjab. I was raised in this city. Nearby Gurudwara Sahib was one of the places I liked to go when I needed to relax completely. I liked spending time with nature; I used to listen to the birds, the blowing winds and looked out over the trees in my garden. I studied in St. Joseph’s Convent and was quite active in co-curricular activities. I was an active sportsperson. During school, playing basketball, volleyball & throw ball was my passion. Bhangra was my forte and I enjoyed spending time and practicing for youth fests with my bhangra team. After my schooling, I studied in Lyallpur Khalsa College, Jalandhar. With a very bright academic career I was selected as President of student council during my last year of Masters in Commerce. Although I was a person who liked spirituality and led a very sweet, peaceful and simple life full of energy & ambitions, I pursued the Company Secretary Course from ICSI, New Delhi and wanted to pursue this career but unfortunately my health became a big hurdle during my journey. You will get to know how a person from commerce background left a career of being a company secretary and became a wellness coach is an interesting story but hard to believe. From being bed ridden to coaching people worldwide change their lives and helping them come out of their sufferings is something close to my heart now.

मेरी कहानी मेरी जुबानी - मेरा सत्य अनुभव

बहुत खूबसूरत होता है वो सफर जिस पर हम हँसते - खेलते अच्छी सेहत का आनंद लेते हुए चलते हैं। ऐसे में वक्त का पता ही नहीं चलता लेकिन जब भी कोई शारीरिक तकलीफ आ जाती है तो हम ज़िन्दगी के उस हसीं सफर का न तो आनंद ले पाते हैं ना ही अपने निजी कार्य अच्छे से कर पाते हैं जिसकी वजह से हम डॉक्टर्स, ड्रग्स और बीमारी में ऐसा उलझ जाते हैं कि एक तरफ से कमाते हैं दूसरी तरफ दवाइयों व महंगे इलाज पर खर्च कर देते हैं। परन्तु यदि किसी युवा के साथ ऐसा हो तो उनके सपने पूरे नहीं होते और वह निराश होने लगते हैं। इस मोड़ पर आकर जरूरत है कि हर बात को गहराई से समझा जाये और सवस्थ जीवन जीने की कामना की जाये।


मूल रूप से सही ज्ञान की कमी से हम जीवन में कुछ ऐसी  गलतियां कर जाते हैं जिनकी वजह से हमें उनके भयंकर परिणाम भुक्तने पड़ते हैं क्योंकि हमें अपने शरीर के लिए क्या अच्छा व लाभदायक है उसका ज्ञान नहीं होता। गलत आहार विहार के कारण हम बीमार हो जाते हैं। ऐसे ही मेरा बीमार होने से लेके ठीक होने का सफर आपसे साँझा कर रही हूँ l


बचपन से ही मैं बहुत सक्रिय रही हूँ। मैं भंगड़ा डांसर रही हूँ l भंगड़ा मेरा शौंक रहा। मैं बास्केट बाल, वाली बाल की खिलाड़ी रही। परन्तु अज्ञानता वश गलत खाद्य पदार्थों को एक साथ ले लेना, गलत मात्रा में लेना या शारीररक प्रकृति के विरुद्ध ले लेना ऐसी कुछ गलतियां रही होंगी l जिससे वात कुपित रहा होगा। मेरी प्रकृति वात व पित्त की थी परन्तु आम मेरा प्रिय फल था तो मैं इसे ढेर सारी मात्रा में खाती थी। इसी आदत की वजह से मुझे बहुत सी त्वचा सबंधी समस्याओं जैसे मुहासे, फिन्सि इत्यादि होने लगी।

तब मेरी उम्र 14 से 18 साल के बीच की रही होगी। जब हम त्वचा विशेषज्ञ के पास गए तो उन्होंने बहुत हैवी एंटीबायोटिक्स दी l  मैंने ढेर सी एलोपैथिक दवाइयां खाई l लेकिन सही ज्ञान व सूचना की कमी के कारण दुष्परिणाम सामने आये l जो कि हमें शिक्षा संस्थानों में नहीं ददए जाता। 14 की उम्र के बाद हमारा पित्त बढ़ता है यदि सही भोजन न लें तो ये बढ़ जाता है। फलसरूप त्वचा विकार उत्पन होते हैं l
इतनी दवाइयां, इतने सारे त्वचा रोग विशेषज्ञों से खाने के बाद ये परिणाम हुआ की मुझे 2012 में  पहले एक हफ्ता डार्या हुआ और वापिस अपने शहर जालंधर जा रही थी तो घर जाने पर मेरे पैरो में तेज दर्द हुआ l इसके साथ आर्थराइटिस की शुरुआत हुई। कुछ लोगो में इसके लक्षण हाथ से, कुछ में पैरों से या अन्य भागों से शुरू होते हैं।

दर्द इतना तीव्र था की मैं माँ और पिता जी की मदद से ही चल पाती थी। दो महीने तक मैं लगातार तेज दर्द में थी। कई डॉक्टर्स को दिखाया पर कोई फरक नहीं पढ़ रहा था। पंजाब का खाना तो वैसे ही बहुत भारी होता है तो यह समझ नहीं आ रहा था कि यह दर्द लगातार क्यों हो रहा है। वह भी बिना किसी स्पष्ट कारण के। दर्द दो महीने से था, तेज था व रात दिन लगातार था। फिर मेरे फॅमिली डॉक्टर ने एक दिन पूछा कि घर में किसी को गठिया है ? तो मैंने कहा हाँ मेरी माँ, मासी और मामा जी को है। तब उन्होंने मुझे आर ए फैक्टर टेस्ट करवाने को कहा। जब रिपोर्ट्स आई तो मेरे डॉक्टर को बहुत बुरा लगा जब रिपोर्ट्स पॉजिटिव आई l तब रिपोर्ट्स में आर ए - 60 व ई ऐस आर - 30 और यूरिक एसिड  - 4 से ज्यादा था जो की सूजन होने पर होता है। उन्होंने कहा की हम इसके लिए एक टैबलेट - ऐरोमेकट शुरू करेंगे जो आर ए के पेशंट को अमेरिका में दी जाती ह। एक माह तक दवा देने के बाद अगले टेस्ट में ये सभी फैक्टस बढ़ गए। आर ए - 60 से 90 , ई ऐस आर - 30 से बढ़कर 60 हो गया। तब मेरे फॅमिली डॉक्टर ने कहा की एलॉपथी में इसका कोई भी इलाज नहीं है l क्योंकि एलॉपथी में सिर्फ सप्रेशन है l जो की सिर्फ दर्द से राहत देता है। इलाज नहीं करता। क्योंकि इनमें सिर्फ दर्द निवारक दवाईयां या स्टेरॉइड्स ही दिए जाते हैं l उन्होंने फिर कहा एलॉपथी में इसका कोई भी इलाज नहीं है। उन्होंने मुझे आयुर्वेदा में इलाज करवाने व योग की मदद लेने के लिए कहा।

मैं बास्केट बॉल की गोल्ड मेडललस्ट थी, उम्र लगभग 25 साल और मैं चल भी नहीं पा रही थी - ये बहुत दुखद था की अब मैं कभी दौड़ नहीं पाऊँगी सोच कर भी सिहर उठती थी। कभी सोचती थी की क्या ज़िन्दगी का इतना ही सफर था ? मैं डॉक्टर से जानना चाहती थी की क्या ऐसी बीमारी का कोई भी इलाज संभव नही ? पर एक उम्मीद की किरन सी झिलमिलाती थी की जरूर कोई न कोई हल तो होगा ही ये एक विरोधाभास सा था की इतने अधिक दर्द में भी मैं निराश नहीं थी। मैं ध्यान करती थी, द्रिढ़ इच्छा शक्ति थी कि कहीं तो इसका इलाज होगा ही। गलत खान पान, एलोपैथिक दवाएं, सही सूचना की कमी, गलत ऋतुचर्या, सप्रेशन की वजह से मैं इस स्थिति में थी। पर ईश्वर की एक ब्लेसिंग या सपोर्ट की वजह से मैं आशावान थी । ये उम्मीद उस वाहेगुरु की कृपा से ही थी की मैं रोज कुछ नया ट्राई करती थी ता कि मैं ठीक हो जाऊ। मैंने एलॉपथी में इसका इलाज ढूंढा, जब कुछ हल नहीं निकला तो बहुत पढ़ा फिर आयुर्वेद की तरफ स्विच किया। इसके साथ साथ न्यूरोपैथी, नेचुरोपैथी आदि को भी फॉलो किया l

खुद पर रोज रिसर्च करना शुरू किया , आहार की समझ खुद में शुरू की कि क्या लेने से दर्द बढ़ता है फिर राजीव दीक्षित जी, वाग भट्ट जी को पढ़ना शुरू किया की शायद किसी के काम आ जाये इस लिए उन चीजों को नोट करना शुरू किया  की शायद किसी के काम आ जाएं जो भी  दर्द में है। मेथी दाना शुरू किया - उसका इफ़ेक्ट चेक किया । डायरी में लिखती थी कि क्या करना है और क्या नहीं करना है। जीवन शैली कैसी रखनी है। उस समय मैं एम काम फाइनल कर रही थी। फिर कंपनी सेक्रेटरी का प्रोफेशनल कोर्स भी किया। 2018 तक कुछ समझ नहीं आया था। 2019 तक आधा रास्ता तय कर चुकी थी। कई बार कई वैद्य भी ट्राई किये पर दर्द कभी ख़त्म नहीं हुए। पर पेन किलर  घातक हैं यह बात समझ आ गयी थी । मेरे पिता जी के प्रिंसिपल भी गठित के मरीज़ थे l वह ऑर्गन्स फेल होने से गुज़र गए। तो सोच लिया था कि पेन किलर  या स्टेरॉइड्स नहीं लेने। ये एक बीमारी ही इतनी घातक है कि और नई बीमारी नहीं मोल लेनी। यहाँ आयुर्वेदिक  दवाईओं से न तो नई ऊजा बनी बल्कि मन भी डिप्रेसिव मूड में आ जाता था l आयुर्वेदा से डाइट की समझ तो डेवेलप हो गयी थी की क्या खाना है क्या नहीं। परन्तु आयुवेद में दवाएं इतनी स्ट्रांग और ज़्यादा मात्रा में होती है कि खाने वाला ऊब जाता है क्योंकि डाइट से ज्यादा दवा होती है l फिर कुछ समय एलो वेरा गिलोय सुबह के समय लेकर समय बिताया साथ ही योग सीखा और हर रोज़ उसका अभ्यास किया l

मैंने योग पतंजलि व भारतीय योग संसथान से सीखा। इससे मेरी बॉडी पेन कम होना शुरू हुआ मैं बेहतर महसूस कर रही थी। जब कि रिपोर्ट्स में आर ऐ फैक्टर हाई आ रहा था पर लक्षण न्यूनतम थे। उन दिनों रोटरी इंटरनेशनल के यूथ विंग रोट्रैक्ट में मैं ३ स्टेट्स की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर थी। उस सब में वयस्त होने की वजह से दर्द और अन्य लक्षण नहीं थे क्योंकि पावर ऑफ़ माइंड शरीर की शक्ति से कहीं ज्यादा पावरफुल होती है। रोटरी के इतने प्रोजेक्ट्स करने में मन वयस्त रहता था की बीमारी की तरफ ध्यान नहीं था। 2014 - 2015 में ई एस आर - 60 - 70 और आर ऐ कि रिपोर्ट्स ज्यादा एडवर्स थी l कई स्कूल / कॉलेजेस से हम असोसिएटेड थे और सोशल प्रोजेक्ट करते थे परन्तु हैरानी ये थी की लक्षण नहीं थे, तो ये सिद्ध हुआ की माइंड अगर शक्तिशाली हो तो लक्षण उभर कर नहीं आते। ये ध्यान की भी पावर है की यदि मन वयस्त हो तो लक्षण भी अव्यक्त हो जाते हैं।

एक बीमार व्यक्ति के पास दो विकल्प हैं कि या तो वो यह सोच के निराश हो के बैठ जाये की अब कुछ नहीं हो सकता या ठीक होने का संकल्प करके कोई हल ढूंढे l कोई भी व्यक्ति कितनी भी बड़ी बीमारी से क्यों न जूझ रहे हों, यदि वे पावर ऑफ़ माइंड से उस पर ओवर पावर कर जाए तो उस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं । कोई भी व्यक्ति चाहे किसी भी बड़ी बीमारी से क्यों न ग्रस्त हो, कोई भी चीज या गंभीर बीमारी चाहे वो कैंसर हो, ट्यूमर हो, कोई भी घातक ऑटो इम्यून बीमारी क्यों न हो, ईश्वर का साथ लेकर  पावर ऑफ़ माइंड का इस्तेमाल करके हम बहुत आसानी से उससे बहार निकल सकते हैं। 2012 से 2015 तक मैं आयुवेदा, नेचुरोपैथी,एलॉपथी, योग, प्राणायाम, एक्सूप्रेससुरे, कलर थैरेपी, सुजोक थेरेपी, सीड थैरेपी सब कुछ पूरी तरह से ट्राई कर चुकी थी l 2014 , 2015 , 2016 में मेरे शरीर में कोई लक्षण नहीं थे l तब मुझे रोटरी इंटरनेशनल से भारत को पतिनिधित्व करने के लिए कनाडा जाने के लिए  चुना गया। मोंट्रियल में मेरी टीम को प्रतिनिधित्व  करने के लिए मैं भी गई। मुझे बड़ी हैरानी हुई की ऐसी बीमारी से निकल कर 32 kg का सूटकेस खुद लिफ्ट कर पा रही थी जब कि पहले कॉलेज का एक छोटा बैग भी नहीं उठा पाती थी l इसे आप पावर ऑफ़ माइंड का जादू कहेंगे कि मैंने अकेले कनाडा तक ट्रेवल किया और सब कुछ वहां बहुत अच्छे से मैनेज किया l तब मैंने महसूस किया कि अब मैं स्वस्थ हूँ l परन्तु 2016 के अंत होते दबुारा मेरी बॉडी में वही दर्द वही जदटलता दबुारा शुरू हो गयी l

अभी मेरी यहाँ तक आते यह रिसर्च शुरू हो गयी थी कि पावर ऑफ़ माइंड से लक्षण नहीं थे परन्तु प्रॉब्लम आ रही थी l ये दर्द शरीर से चले गए थे।ठीक होने के दो साल बाद दोबारा आर ऐ का अटैक शुरू हुआ। मैंने डाइट रिफार्म पर काम शुरू किया l 2016 - 2017 में मैं रॉ डाइट पर आ गयी l इस समय पर मैंने युपी एस ऐसी की तयारी शुरू कर दी थी। तो ये मेरा पैशन था। मैं बचपन से डॉक्टर बनना चाहती थी। पर केमिस्ट्री के डर से मैंने मेडिकल छोड़ दी क्योंकि मैं मानती थी की के चेमिकल्स हमारे शरीर के लिए नहीं बने हैं। इसलिए मुझे कुदरती पसंद नहीं था। पर मैं कुछ पैशनेट करना चाहती थी। पर मैं थोड़ी सी ऑथॉररटी रही हूँ बाई नेचर तो मैंने युपी एस ऐसी चुना। जब मैंने तयारी शुरू की तो दर्द भी बढ़ गया युपी एस ऐसी कक्षा से जब मैं घर आती तो अत्यधिक दर्द की वजह से (2017 - 2018 में) मैं बहुत फुट फुट कर रोती थी कि मेरे सुपनो के बीच में ये दर्द क्यों आ रहे हैं l आखिर जब मैं कुछ करना चाहती हूँ तो उसके बीच में ये शरीर क्यों आ रहा है, ये मन के ऊपर एक बहुत बड़ा अटैक होता था l पेनकिलर्स / स्टेरॉइड्स एक सप्रेशन है जो थोड़ी देर तो  दर्द से राहत दे सकती है पर आराम नहीं मिलता l  वैसे भी आप एक दिन में कितनी पेन किलर्स खा सकते हो ? क्योंकि जैसे जैसे आप उन्हें खाओगे वो आपके अन्य अंगो को नुकसान पहुंचlना शुरू कर देंगे। जब मुझे दर्द होता था मैं पेन किलर को सिर्फ देख कर रख देती थी l  मन में आता था कि मैं दर्द सेहन कर लुंगी लेकिन पर अब मैं अपने शरीर का और नुकसान नहीं कर सकती l तो मैंने कभी पेन किलर्स नहीं ली। युपी एस ऐसी का प्रीलिम्स क्लीयर कर लिया था पर दर्द का अटैक इतना ज्यादा था की Mains ड्राप करना पड़ा। फिर मैंने पलांट बेस्ड नुट्रिशन को स्टडी किया l डेटोक्सिफिकेशन किया l फिर मैंने दूध और दूध से बने सब पदार्थ बंद किये लेकिन सिर्फ देसी गए कि शुद्ध देसी घी को चालू रखा क्योंकि यह शरीर के लिए बहुत ज़रूरी है l इसे मैंने खुद पर अमल किया  पका खाना कम किया - रॉ शुरू किया, फल / सलाद बढ़ाया। तो ये मैंने देखा ये बहुत फायदेमंद रहा। वैगन होने के बाद मेरी स्थिति बेहतर हुई पर जब स्प्रिंग या मानसून सीजन आया तो इसी डाइट से दिक्कत आना शुरू हो गयी।

क्योंकि एक डाइट जो गर्मियों में अच्छा कर रही है, बाकी सीजन में वही हानि कर रही है। 2012 से मैं हर चीज अपनी डायरी पर नोट कर रही थी ताकि ये किसी और की तकलीफ में भी काम आ पाए। किसी के मार्ग दर्शक बनने का शायद प्रभु का पलान था जो ये सब नोट हो रहा था या ये सोच थी। 2018 में सिज़ोफ्रेनिआ की एक मरीज अपनी दिक्कत लेके मेरे पास मदद के लिए आयी तो उनके द्वारा मैं डॉक्टर तंवर से मिली l वो मेरी शारीरिक दर्दों को देखकर बोली कि आपका माइंड तो पूरी तरह स्वस्थ है और इस तकलीफ के लिए सब कुछ ट्राई कर चुके हो तो क्यों नहीं आप एक बार डॉक्टर तंवर से भी मिल लेते l  हो सकता है कि आपका दर्द ठीक  हो जाए। तब मैं डॉक्टर साहब से मिली तो उन्होंने कहा की हमें आपको ठीक करना है। आपकी बीमारी को ठीक नहीं करना । आप ठीक हो जाएँगी तो आपके शरीर में जितनी भी तकलीफें, कमियां या दोष हैं एक एक करके दूर होती चली जाएँगी। सभी बीमारी अपने आप चली जाएँगी। जब मैंने ये सुना तो मुझे ये काफी अलग लगा। अपनी 28 तक की उम्र में मैंने ये कभी सुना नहीं था कि हमें आपको ठीक करना है आपकी बीमारी को नहीं ये बहुत अद्भुत था । वह कहना चाहते थे कि ट्रीटमेंट वो मुझे देंगे, इलाज मेरा होगा, वह मुझे इमोशनली, फिजिकली और मैन्टली हील करेंगे l दवाई  हमें तीनो स्तर पर ठीक करेगी l वो कहना चाहते थे कि अगर एक बीमारी ठीक  करेंगे तो वो दूसरी बीमारी में बदल जाएगी l इस तरह गठिया ठीक करोगे तो कैंसर या और कोई बड़ी बीमारी बन जाएगी| 

क्योंकि जब बीमारी को आप सप्रेस करते हो तो वो शरीर में जाकर किसी अन्य बड़ी बीमारी को जन्म देती है l क्योंकि वो शरीर में जा के किसी अन्य स्तर पर चली जाती है क्योंकि शरीर के सात स्तर होते है। जितनी गहरी परत में बमरी जाएगी उतना ही गंभीर रोग बनती चली जाएगी  अगर नेचुरोपैथी, होमओपैथी और आयुर्वेदा को सटीक तरीके से किया जाये तो वह एक व्यक्ति को ठीक करती है बीमारी को नहीं l तब 2018 - 2019 के समय मैंने ईश्वर से एक वायदा किया कि ये डॉक्टर जो कह रहे हैं, इनके बताये रास्ते पे चल कर यदि यह दर्द सच में ठीक हो गया तो मैं अपना जीवन स्वास्थ्य के मार्ग पर समर्पित करुँगी, लोगों को ठीक करने के लिए जो अपनी छोटी सी गलतियों के कारण या अन्य किसी कारण से बड़ी बिमारिओं से जूझ रहे हैं मैं उन्हें ठीक करने व गाइड करने में प्रयासरत रहूंगी l फिर चाहे मुझे अपना करियर वहँगे क्यों न करना पड़े l

दो साल बाद 2020 - 2021 में मेरी पलांट बेस्ड डाइट, आयुर्वेदिक होम रेमेडी, होमओपैथी, सही नुट्रिशन, योग एवं प्राणायाम  के चलते जब मैंने अपने टेस्ट करवाए तो मेरे सारे टेस्ट ठीक आए l तब मैंने खुद को न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक स्तर पर भी स्वस्थ पाया , मैंने हर चीज को सामान्य पाया। मैंने डांस, भंगड़ा परफॉरमेंस फिर से शुरू किया और मेरे लिए असीम ख़ुशी की बात थी जब अपनी भंगड़ा टीम के साथ ग्लोबल फेस्ट पर माउंट अबू में उप राष्ट्रपति के मौजूदगी में स्टेज परफॉरमेंस दी l मैं स्पोर्ट्स दुबारा खेल सकती थी क्योंकि मैं सोशल मीडिया से दूर हो गयी थी। जब ये रिपोर्ट के रिजल्ट्स देखे तो जो मेरी 75 आइटमस से अलेर्जी थी वो भी दूर हो गयी l मेरे जब ये ररजल्ट देखे तो डॉक्टर तंवर भी बहुत खुश हुए l जब मैंने उनसे पूषा की आप ये सब कैसे कर पlते हैं तो उन्होंने और तथ्य मुझसे साँझा किये l तब से मैंने होमओपैथी की स्टडी और प्रैक्टिस  करना शुरू किया l

नैचुरोपैथी, पलांट बेस्ड नुदट्रशन और डाइट को स्टडी किया ही था l अब मैं  ये बताना चाहती हूँ की ये प्रोसेस कैसे चला है l इस ट्रीटमेंट को शुरूकिया तब मुझे 3 - 4 बार दस्त, डायरया , कई बार फीवर, खांसी, ज़ुकाम और कुछ त्वचा पर एलर्जी हुई।  मैंने उसे सप्रेस नहीं किया l कोई भी दवाई लेकर शरीर से निकल रहा है उसे निकलने दिया l क्योंकि ये कांसेपट था कि डॉक्टर ने कहा था की जैसे जैसे बताऊंगा वैसे वैसे आपको करना है क्योंकि इसे मैंने एक लक्ष्य की तरह लिया था की यदि मैं ठीक हो गयी तो और पीड़ित लोगों के लिए रास्ता खुलेगा l तो जैसे जैसे वो बताते गए मै करती गयी l उन्होंने कहा फीवर हुआ है होने दो ये स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, दस्त है तो होने दो कितने दिन लगेंगे ? मुझे तीन चार बार एक एक हफ्ते के लिए फीवर, खांसी, दस्त एक साथ लगे रहे l मै एक एक हफ्ता बहुत खस्ता हालत में रही l इस तरह से धीरे धीरे शरीर डेटॉक्स हुआ और मैं ठीक होते चली गय।  


अतः मैं यही सन्देश सबको देना चाहूंगी कि जब तक हम बीमार होने और स्वस्थ होने के प्रोसेस को नहीं समझते तब तक ठीक होना नामुमकिन है l अगर कोई व्यक्ति किसी भी बीमारी से जूझ रहा हो और ठीक होना चाहता हो तो कुदरत के यही नियम है कि बिना शर्रेर कि गंदगी बहार निकले समुराण रूप से ठीक होना मुमकिन नहीं l जितना हम प्रकृति पर निर्भर रहेंगे उतना स्वस्थ रहेंगे l

आभार - करम